किसानों को जीरा बनाएगा हीरा

मसाले के रूप में जीरा एक महत्वपूर्ण फसल है। जीरा का स्वाद वाष्पशील तेल की उपस्थिति की वजह से है। जीरा कम समय एवं लागत में तैयार होकर अधिक आय प्रदान करने वाली फसल है। राजस्थान राज्य में देश के कुल उत्पादन का लगभग 28% जीरे का उत्पादन किया जाता है ।राज्य में जीरे की खेती मुख्यतः अजमेर, पाली, जालौर, सिरोही, बाड़मेर, नागौर, जयपुर ,टोंक जिलों में की जाती है।
कहा जाता है कि जैसा किसान बोएगा वैसा ही पाएगा इसलिए बीजों की बुवाई उत्पादन मे अहम भूमिका अदा करती है। जीरे की बुवाई 1 नवंबर से 25 नवंबर के बीच में करनी चाहिए क्योंकि इस समय का तापमान 24 से 28 डिग्री सेल्सियस होता है जो की बुवाई के लिए उपयुक्त है।
बूआई हेतू जिवांश युक्त दोमट मिट्टी, जल निकास वाली होनी चाहिए तथा खेत को अच्छी तरह से जोत कर मिट्टी को भूर- भूरी बनाना चाहिए तथा अच्छी पैदावार के लिए 10 टन गोबर खाद ,30 किलो नत्रजन,20 किलो फास्फोरस, 20 किलो गंधक प्रति हैक्टेयर मिला देनी चाहिए ।
जीरा का 12 से 15 किलो बीज एक हेक्टर के लिए उपयुक्त रहता है।
बूआई से पूर्व जिरे के बीज को 2 ग्राम कार्बेंडाजिम 50 डब्ल्यूपी प्रति किलोग्राम के हिसाब से उपचारित करना चाहिए। सामान्यतः प्रत्येक किसान भाई जिरे की बुआई छिड़काव विधि द्वारा करते हैं परंतु कल्टीवेटर या दराती से 30 सेंटीमीटर के अंतराल पर पंक्तियां बनाकर बुआई करना अच्छा रहता है एवं जिरे की गहराई 1.5 सेंटीमीटर से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।

जीरे की अच्छी पैदावार के लिए किसान भाइयों को उन्नत किस्में जैसे आरजे 19 ,आरजे 209 ,आरजे,223, गुजरात जिरा 2, गुजरात जिरा 4 का उपयोग करना चाहिए।
जीरे की बुवाई के तुरंत बाद  हल्की सिंचाई करने चाहिए ,दूसरी सिंचाई 6-7 दिन बाद करना चाहिए उसके पश्चात 20 दिन के अंतराल पर 3 सिंचाई और करनी चाहिए इस प्रकार जिरे में 5 सिंचाई करना आवश्यक होता है और सिंचाई के लिए फव्वारा विधि का उपयोग उत्तम माना गया है ।
अभी जीरे की फसल में सल्फर देना आवश्यक है क्योंकि सल्फर से जीरे पर पाले का प्रभाव भी कम पड़ेगा और जिले की गुणवत्ता में भी सुधार होगा।
जीरे में खरपतवार का प्रकोप कम करने के लिए बुवाई के बाद पेंडीमैथालीन 3.3 लीटर का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें ।
सामान्य जीरे की फसल 120 दिनों में तैयार हो जाती है किसान भाई उपयुक्त उन्नत तकनीकी अपनाकर 6-10 क्विंटल जिरे की उपज ले सकते है।

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